३० अक्तूबर, १९७१

 

   मुझे ऐसा लगता है कि मुझे जगत् के 'क्यों'का पता है ।

 

  प्रश्न था चेतनाकी ऐसी स्थिति प्राप्त करनेका जिसमें एक साथ व्यक्ति- गत चेतना -- व्यक्तिगत चेतना जो स्वभावत: हमें प्राप्त है -- तथा समग्रकी चेतना, चेतना (कैसे कहा जाय?). -. जिसे हम सार्वभौम चेतना कह सकते हैं, दोनों एक साथ हों । लेकिन दोनों चेतनाएं किसी चीजमें जा मिलती है... हमें उसे खोजना है ।

 

  एक ऐसी चेतना जो एक हीं समयमें व्यक्तिगत और समग्र हो । और यह समस्त श्रम दोनों चेतनाओंको एक चेतनामें मिलानेके लिये है जो एक ही साथ दोनों हों । और यही अगली सिद्धि है ।

 

 ( मौन)

 

   हमें ऐसा लगता है कि इसमें समय लगता है (हमारे लिये यह समय- मे अनूदित होता है), मानों, यह किया जा रहा है, मानों, ''कुछ किया जा रहा है'' मानों, ''कुछ करनेके लिये है ।'' परंतु हम इस भ्रममें हैं, क्योंकि हम अभीतक.. अभीतक उस पार नहीं गये हैं ।

 

   लेकिन वैयक्तिक चेतना मिथ्यात्व बिलकुल नहीं है, उसे समग्रकी चेतना- के साथ इस तरह जुतना चाहिये कि उससे एक और चेतना बन जाय जो हमें प्राप्त नहीं है, जो अभीतक हमारे पास नहीं है । यह नहीं कि यह दूसरी चेतनाको रद्द कर दें, समझे? उनमें एक समायोजन होना चाहिये, एक नया पक्ष होना चाहिये, पता नहीं.. जिसमें दोनों एक साथ अभिव्यक्त हों ।

 

  उदाहरणके लिये, इस समय सृष्टिकी उस शक्तिके बारेमें एक अनुभवों- की पूरी शृंखला है जो व्यक्तिगत चेतनामें छिपी रहती बैठ, यानी, यह है चीजोंको जाननेकी. शक्ति -- जाननेकी या जिसे हम संकल्प करनेकी शक्ति कहते है -- यह उनके रूप लेनेसे पहले व्यक्तिगत चेतनामें रहती है । हम कहते हैं ''हम यह चाहते है'', पर यह एक मध्यवर्ती चेतना है । यह ऐसी चेतना है जो एक ऐसी चीजकी ओर जाती है जो एक साथ, जो होना चाहिये उसका अंतर्दर्शन, और उसे चरितार्थ करनेकी शक्ति है ।

यह अगला कदम है । फिर...

 

तो हमारे लिये, यानी, व्यक्तिगत चेतनाके लिये वह चीज समयमें अनूदित होती है, पता नहीं कैसे कहा जाय... के लिये आवश्यक समय... ।

 

  मुझे ऐसा लगता है : तुम यह नहीं हो, तुम अभी वह भी नहीं हों, तुम्हें वह बननेके लिये इसे न छोड़ना चाहिये -- दोनोंको एक होकर कुछ नयी चीज बनना चाहिये ।

 

  और इससे सब कुछ स्पष्ट हो जाता है -- सब कुछ, सब कुछ, सब कुछ । और इससे कोई चीज रद्द नहीं होती ।

 

  हम जिस किसी चीजकी कल्पना कर सकते हैं उससे यह सैकड़ों गुना अधिक अद्भुत है ।

 

  प्रश्न यह है कि क्या (शरीर) अनुसरण कर सकेगा... । अनुसरण करनेके लिये उसे केवल सहन करना ही नहीं, बल्कि एक नया रूप, एक नया जीवन प्राप्त करना होगा । वह, मुझे नहीं मालूम । बहरहाल, इसका बहुत महत्व नहीं है -- चेतना स्वच्छ है और चेतना इसके (शरीरकी ओर इशारा) अधीन नहीं है । अगर इसका उपयोग किया जा सके तो बहुत अच्छा, अन्यथा... । अभी जानने लायक और भी चीजें है ।

 

  हां, खोजनेके लिये और मी चीजें हैं । पुराना ढर्रा खतम हों गया, खतम ।

 

  जिस चीजकी खोज करनी है वह जड़ पदार्थकी नमनीयता है - कि पदार्थ हमेशा प्रगति कर सके । तो यह रहा ।

 

  इसमें कितना समय लगेगा? मुझे पता नहीं । कितने अनुभवोंकी जरूरत है? मुझे पता नहीं, पर अब रास्ता साफ है ।

 

रास्ता साफ है ।